करवा चौथ एक प्रसिद्ध हिंदू त्योहार है जो विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और उनकी खुशी के लिए व्रत रखती हैं। इस त्योहार को विशेष रूप से उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात आदि राज्यों में मनाया जाता है, लेकिन आजकल यह पूरे भारत में मनाया जाता है।
यह व्रत पति-पत्नी के प्यार और बंधन को मजबूती से जोड़ता है। पत्नी इस दिन उपवास रखती है और सूबह से रात तक बिना भोजन किये अपने पति की लंबी आयु की कामना करती है।
करवा चौथ के दिन, यहां कुछ कदम बताए गए हैं जो करवा चौथ का व्रत मनाने में सहायक हो सकते हैं:
1.सुबह से उपवास (निर्जला व्रत)
सुबह से निर्जला व्रत को "निर्जला" शब्द से जाना जाता है, जिसका अर्थ होता है "बिना जल के"। यह एक प्रकार का उपवास होता है जिसमें व्रती को उपवास के दौरान पूरे दिन भोजन या पानी की स्वीकृति नहीं होती है।
करवा चौथ जैसे विशेष अवसर पर, निर्जला व्रत का पालन किया जाता है। इसमें व्रती स्त्री सुबह से रात के समय तक भोजन या पानी नहीं पीती हैं। यह व्रत अत्यंत मान्यताओं और धार्मिक अर्थों के साथ जुड़ा होता है और पति की लंबी आयु और उनकी खुशी की कामना करती है।
यह प्रथा अधिकांशत: विवाहित महिलाओं द्वारा पालन की जाती है, जो अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। निर्जला व्रत निर्जला पंचांग की तिथि के अनुसार, सूर्योदय से रात्रि के समय तक किया जाता है।
निर्जला व्रत के दौरान व्रती स्त्री बिना पानी पीने के साथ भोजन भी नहीं करती हैं, जो करवा चौथ के महत्वपूर्ण दिन में अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
2. पूजा और सांध्या का समय:
पूजा और सांध्या का समय करवा चौथ के दिन महिलाएं करती हैं जब वे अपने पति की लंबी आयु और उनकी खुशी के लिए उपवास रखती हैं। इस दिन सांध्या के समय (दिनभर के अंत में) व्रती स्त्री पूजा करती हैं।
करवा चौथ की पूजा में कई त्योहारी सामग्री इकट्ठी की जाती है जैसे कि करवा चौथ की थाली, सिंदूर, मिठाई, पुष्प, दीपक आदि। पूजा के दौरान, स्त्री चौथ की थाली में रखी गई सामग्री का उपयोग करके पूजा करती हैं।
व्रती स्त्री किसी शुभ मुहूर्त में पूजा करती हैं, जो करवा चौथ के अनुसार निर्धारित किया जाता है। यह पूजा विवाहित महिलाओं के लिए उनके पति की लंबी आयु और खुशी के लिए की जाती है।
सांध्या का समय करवा चौथ के दिन विशेषत: यह समय दिनभर के अंत में होता है, जब धूप कम होती है और संध्या अर्थात सूर्यास्त के समय करवा चौथ की पूजा की जाती है।
3. पति के दरबार में पूजा
"पति के दरबार में पूजा" का अर्थ होता है पति के सामने पूजा करना। करवा चौथ के दिन, इस पूजा का त्योहार महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और उनकी खुशी की कामना करती हैं।
पूजा के समय, पत्नी अपने पति के सामने बैठती है और उनकी सेवा करती है। उन्हें व्रत रखने का प्रयोजन बताती हैं और पति की लंबी आयु और उसकी खुशी के लिए प्रार्थना करती हैं।
इस समय पत्नी विशेष रूप से तैयार किया गया सुंदर थाली लेकर आती हैं, जिसमें पुष्प, दीपक, मिठाई, करवा चौथ की थाली, और अन्य पूजा सामग्री होती है। इस थाली को उठाकर पति के सामने रखती हैं और उनके पैरों को धोती हैं। फिर उनके चरणों की पूजा करती हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
यह पूजा का रिवाज दोनों के बीच प्रेम और सम्मान को मजबूती से जोड़ता है और विवाहित जीवन में खुशियों की बारिश बरसाता है।
3. चांद देखकर उपवास खोलना
"चांद देखकर उपवास खोलना" एक प्राचीन परंपरा है जो करवा चौथ व्रत को खत्म करने के लिए प्रयोग की जाती है। इस परंपरा में, उपवास रखने वाली स्त्री रात को चाँद को देखकर व्रत को खोलती है। चाँद देखने के बाद, उसके पति के हाथ में पानी और फल देकर व्रत खोला जाता है।
इस रीति-रिवाज़ में, जब व्रती स्त्री रात्रि में चाँद देखती है, तो उसे पति की ओर से पानी और फल दिया जाता है और उसे अपनी रात्रि का व्रत खोलने के लिए कहा जाता है। पति के हाथ में पानी और फल देने का यह कार्य स्त्री के व्रत को समाप्त करता है।
यह प्रथा विवाहित महिलाओं के बीच विशेष रूप से प्रसिद्ध है और इसे उन्हें अपने पति की लंबी आयु और खुशी की कामना करने के लिए मान्यता दी जाती है।
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